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नाथुराम गोडसे की जन्म तिथि पर वर्षों बाद किसी कवि ने दबे सच को फिर से उजागर करने की कोशिश की है

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      नाथुराम गोडसे की जन्म तिथि पर वर्षों बाद किसी कवि ने दबे सच को फिर से उजागर करने की कोशिश की है आप सभी  साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए कवि की मूल कविता नीचे विस्तार से लिखी गयी है !*  Years later, on the date of birth of Nathuram Godse, a poet has tried to uncover the buried truth again, for all you literature lovers, the poet's original poem has been written in detail below! *यह कविता आज सुबह से सोशल मीडिया पर भारी संख्या में शेयर की जा रही हैं !* *माना गांधी ने कष्ट सहे थे,*  *अपनी पूरी निष्ठा से।*               *और भारत प्रख्यात हुआ है,*                    *उनकी अमर प्रतिष्ठा से ॥* *किन्तु अहिंसा सत्य कभी,* *अपनों पर ही ठन जाता है।*                *घी और शहद अमृत हैं पर,*             *मिलकर के विष बन जाता है !!* *अपने सारे निर्णय हम पर,* *थोप रहे थे गांधी जी।*           ...

राष्ट्र भक्ति ले हृदय में हो खड़ा यदि देश सारा

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राष्ट्र भक्ति ले हृदय में हो खड़ा यदि देश सारा  संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा।।  क्या कभी किसी ने सुना है सूर्य छिपता तिमिर भय से  क्या कभी सरिता रुकी है बांध से वन पर्वतों से  जो न रुकते मार्ग चलते चीर कर सब संकटों को  वरण करती कीर्ति उनका छोड़ कर सब असुर दल को  ध्येय-मंदिर के पथिक को कण्टकों का ही सहारा।।1।।  हम न रुकने को चलें हैं सूर्य के यदि पुत्र हैं तो  हम न हटने को चलें हैं सरित की यदि प्रेरणा तो  चरण अंगद ने रखा है आ उसे कोई हटाए  दहकता ज्वालामुखी यह आ उसे कोई बुझाए  मृत्यु की पी कर सुधा हम चल पडेंगे ले दुधारा।।2।।  ज्ञान के विज्ञान के भी क्षेत्र  में हम बढ़ चलेंगे।  नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे   भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देंगे  त्रास के घने बादलों से सौख्य की वर्षा करेंगे  स्वप्न यह साकार करने संगठित हो देश सारा।।3।।

आदिवासी योद्धा पूंजा भील

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आदिवासी योद्धा पूंजा भील जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध किया। जिसके धनुष मात्र से अकबर की सेना में हड़कंप मच जाता था। ऐसे आदिवासी योद्धा को नमन।  राणा पूंजा भील का जन्म मेरपुर में हुआ था। उनके पिता के देहांत होने के पश्चात 15 वर्ष की अल्पायु में उन्हें मेरपुर का मुखिया बना दिया गया। यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, इस परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वे जल्दी ही ‘भोमट के भील सरदार’ बन गए। अपनी संगठन शक्ति और जनता के प्रति प्यार-दुलार के चलते वे वीर भील नायक बन गए, उनकी ख्याति संपूर्ण मेवाड़ में फैल गई। अकबर और राणा प्रताप भीलों की सैनिक सहायता प्राप्त करने के लिए भीलों के सरदार पूंजा भील के पास आए क्योंकि (मेरपूर) भोमट क्षेत्र के वन क्षेत्र में भीलों का अधिकार था और भोमट क्षेत्र को पार कर के ही मेवाड़ पहुंचा जा सकता था। राणा प्रताप का एक कारण यह भी था भीलों से सहायता पाने का कि भील गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में भील माहीर होते हैं। भीलों के 'कीका' राणा प्रताप  भीलों ने ही राणा प्रताप का पालन पोषण किया था। भील राणा प्रताप को 'कीका' कहा करते थे। इसलिए पूंजा भील ने राणा प्र...