ब्रह्मर्षि अम्बाला संस्थान


आध्यात्मिक परिचय
सनातन संस्कृति एवं सभ्यता की धरोहर हिन्दुस्तान, जिसके हृदय मध्यप्रदेश के जिला कटनी अंतर्गत तहसील बड़वारा में कटनी-शहडोल राष्ट्रीय राजमार्ग 78 में स्थित सेवा संस्थान लखाखेरा आश्रम। अध्यात्मिक तथा अलौकिक शक्तियों का केन्द्र यह तपोभूमि, जिसका प्राचीन इतिहास अनादि काल से भी पुराना है। यहॉ पहुचने मात्र से ही व्यक्ति के विचार सकारात्मक हो जाते हैं, मनः स्थिति परिवर्तित हो जाती है तथा वह सभी तनावों से मुक्त हो जाता है।
इस सेवा संस्थान के संस्थापक ''महायोगी हरि ओम दास जी'' अलौकिक तथा पारलौकिक शक्तियों के स्वामी हैं। आपको ईश्वरीय साक्षात्कार हुआ, शक्तिपात हुआ। दिव्य शक्तियॉ तथा दिव्य ज्ञान की प्राप्ति इसी पावन भूमि में हुई । आपका ज्ञान एवं अध्यात्म वहॉ से शुरू होता है, जहॉ से इंसान एवं विज्ञान की सोच समाप्त होती है। जैसे-आत्म साक्षात्कार, आत्म दर्शन, आत्मावलोकन, प्राणविखण्डन, परकाया प्रवेश, सूक्ष्म जगत का दर्शन एवं भ्रमण, देव लोकों का दर्शन, वायु गमन, बृह्माण्ड की सैर, अन्तः करण में भ्रमण करना, अदृश्य शक्तियों से बातें करना आदि ऐसी कई क्रियाए हैं, जिनके बारे मे न सिर्फ जानकारी देते हैं, बल्कि वास्तविक अनुभव भी कराते हैं।
महायोगी हरि ओम दास जी का जन्म २५ मई १९८२ को जिला उमरिया, मध्यप्रदश (भारत) में हुआ। दिनांक २५ मई १९९८ को आपको ईश्वरीय साक्षात्कार ग्राम लखाखेरा (बड़वारा) के इसी तपोभूमि मे हुआ। फिर दिनांक २६ मई १९९८ को १६ वर्ष की आयु मे शक्तिपात हुआ। दिव्य शक्तियॉ तथा दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात आपने घर तथा पढाई त्याग कर वैराग्य ले लिया। तबसे आप जगत के कल्याण एवं मानव मूल्यों के विकास हेतु सतत्‌ प्रयत्नशील हैं।
वैराग्य पश्चात्‌ आपने सेवा संस्थान लखाखेरा आश्रम की स्थापना कर कई दिव्य और अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति की। इसके लिए आपने १ वर्ष ८ माह की समाधिस्थ साधना की, लगभग २ वर्ष हिमालय की दुर्गम कन्दराओं एवं वर्फीली पहाड़ियों में कठोर तपस्या की, लगभग २ वर्ष भोजन त्याग कर सिर्फ हरी पत्तियों के अर्क का सेवन करके साधना किये।
योगा-ध्यान, तप-साधना के माध्यम से एवं अदृश्य ईश्वरीय शक्तियों के माध्यम से आत्म साक्षात्कार किया। बृह्माण्ड दर्शन (शरीर के अन्दर एवं शरीर के बाहर) किया, प्राण विखण्डन की क्रिया के माध्यम से कई रूपों में अलग-अलग स्थानों एवं लोको में तपस्या की।
जन कल्याण
दुनिया के समस्त लोगों को सद्ज्ञान प्रदान कर उन्हें मुक्ति एवं मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करना । इस लोक में सफल जीवन जीने की कला का ज्ञान प्राप्त कर उस लोक (परमात्मा) के लिए भी ऊर्जा का संग्रह करें एवं परमधाम को प्राप्त करें। इसके लिए सर्व धर्म की स्थापना कर मानव मूल्यों के विकास हेतु दुनियॉ में व्याप्त समस्त बुराईयों को समाप्त करना, मानव मस्तिष्क के समस्त विकारों को समाप्त करना, नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक सोच व ऊर्जा लाना, प्रकृति (पर्यावरण) को विकार (प्रदूषण) मुक्त करना तथा प्रत्येक मानव का सर्वांगीण विकास करना ।
जब दुनिया के प्रत्येक मानव अपने आप को पहचानेंगे, सत्य एवं ईष्वर के राह पर चलेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब इस कलयुग में ही अपने आप सतयुग स्थापित हो जायेगा ।
धर्म-सम्प्रदाय, जाति-वर्ग, छुआ-छूत, ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा, देश-विदेश, की भावना को समाप्त कर मानव धर्म, की स्थापना करना ।


सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मां कश्चित दुखः भाग भवेत् ।।

जीवन का लक्ष्य
प्राचीन काल से हिन्दुस्तान, सनातन संस्कृति एवं सभ्यता का केन्द्र बिन्दु रहा है। हिन्दुस्तान धर्म, अध्यात्म, योगा, षिक्षा, संस्कार, एवं मानव मूल्यों के विकास का केन्द्र रहा है।
आज दुनिया के शक्तिषाली एवं विकसित देशों में जहॉ विकास चरम पर है, और आगे विज्ञान के क्षेत्र में विकास को कुछ भी नही रह गया है, तब वहॉ की सरकार ने तुलनात्मक अध्ययन मे पाया कि सदियों पहले हिन्दुस्तान इससे भी अधिक विकसित था।
जैसे-दुनिया के सबसे तेज चलने वाले विमान की गति से भी तेज उस समय रावण का पुष्पक विमान चलता था, जो मन की गति से चलता था। आज के घातक से घातक मिसाईलों से भी ज्यादा शक्तिषाली एवं घातक तत्कालीन बाण थे। आज के परमाणु बम एवं अणुबम से भी ज्यादा घातक तत्कालीन बृह्मास्त्र था। आज के दूरसंचार की सफलतम तकनीक की तुलना मे तत्कालीन संचार (Tele Pathy) था, जब ऋषि-मुनि, व्यक्ति, योगा-ध्यान के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर सषरीर पहॅुच जाते थे। इसी तरह प्राण विखण्डन, परकाया प्रवेष, बृह्मण्ड दर्षन एवं भ्रमण (सषरीर जीवित अवस्था में स्वर्गलोक, देव लोक आदि लोकों में पहॅुच जाना।) किया करते थे।
तब के ऋषि-मुनि/मानव इतने शक्तिशाली एवं सामर्थ्यवान होते थे, जिसकी कोई सीमा नही है। अगस्त मुनि ने एक ही घूंट में पूरा समुद्र पी लिया था।
ध्यान दें हिन्दुस्तान की ये समस्त सनातन शक्तियॉ, क्रियाए विलुप्त नही हुई हैं। जानकर व्यक्तियों द्वारा अपने ज्ञान का आगे सम्प्रेषण न किये जाने एवं उनकी मृत्यु पश्चात वह विद्या उन्ही के साथ विलुप्त हो गई या फिर सामर्थ्यवान गुरू द्वारा ये विद्याए दी भी गई तो पूरी नही दी गई। यह प्रक्रिया सनातन से चलते-चलते वर्तमान मे यह स्थिति आ चुकी है कि हमारी सनातन की सभ्यता, संस्कृति, विकास, अध्यात्मिक क्रियाए, शक्तियॉ विलुप्त होने के कगार पर हैं। यदि कोई थोड़ा-बहुत जानता भी है, तो वह उसे अपने अंदर समेटे हुए है। हो सकता है कि सामर्थ्यवान गुरू न हो, या फिर ग्राह्यता हेतु उतने सक्षम शिष्यों का अभाव हो।
उस परमात्मा ने हमें असीम शक्तियॉं प्रदान करके इस धरती पर एक विशेष कार्य सिद्धि के लिए भेजा है। किन्तु हम अपने आपको (आत्मा को) भूलकर शरीर को सबकुछ समझ बैठे और अपने अर्न्तिर्नहित शक्तियों से अनजान अपने ही द्वारा बनाई गई मूर्तियों, मंदिरों में शक्तियों की खोज करने लगे। मैं ये नहीं कहता कि आप नास्तिक हो जायें या मेरे इन बातों से आपकी धार्मिक भावना को आहत करने का उद्देश्य नही है।
जरा सोचिये ! जब आप किसी मंदिर (देवस्थान) मे मूर्ति (ईश्वर) के सामने कार्यसिद्धि हेतु प्रार्थना करते हैं, उस समय आपकी एकाग्रता, सकारात्मक उर्जा और दृढ संकल्प शक्ति से (कि मैने भगवान से प्रार्थना कर ली है, मेरा काम हो जायेगा) आपका कार्य सिद्ध हो जाता है, और पूरा श्रेय आपके आस्था का केन्द्र उस ईश्वर को जाता है। आप उन्हें नमन करते हैं, और प्रसन्न हो जाते हैं। किन्तु यदि आप इसी एकाग्रता, सकारात्मकता और दृढ़ संकल्प शक्ति के साथ अपने अंदर छिपी अलौकिक और पारलौकिक शक्तियों को जाग्रत करने का प्रयास करें तो आपको अपने अंदर ईश्वर (परमात्मा) के दर्शन अवश्य प्राप्त होंगे और आपको ईश्वरत्व की प्राप्ति होगी। आप अपने साथ-साथ अन्य लोगों की भी मदद कर सकेंगे। आप स्वयं देवतुल्य हो जायेंगे।
ध्यान दें प्रकृति ने हम सभी को एक खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही इस दुनिया में शरीर देकर भेजा है। परन्तु यहॉ आने के बाद हम उस उद्देश्य को भूलकर मोह-माया के जाल में फस जाते हैं। हम उस ईश्वरीय कार्य को भूलकर अपने विकास के नाम पर अपने विनाश की तैयारी करते है। जिसका नतीजा है अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाए।
ध्यान रखें प्रकृति अपना वांछित कार्य आपसे किसी न किसी रूप में करा लेती है।
प्रकृति का कोई भी कार्य न कभी रूका है और न ही रूकेगा । रूक रहा है तो सिर्फ ओर केवल सिर्फ हमारा अध्यात्मिक विकास। क्योकि मरने के बाद हमारा शरीर यहीं रह जाता है। कुछ भी साथ नही जाता है। जाती है तो सिर्फ वह आत्मा और संचित की हुई आत्मिक शक्तियॉ।
विश्व कल्याणार्थ, मानवमूल्यों के विकास हेतु दृढ़ संकल्पित मेरा परम उद्देश्य है कि धर्म-सम्प्रदाय, जाति-वर्ग, लिंग-भेद, देश-विदेश, की भावनाओं से ऊपर उठकर ‘‘मानव धर्म’’ को अपनायें। अपने आप को पहचानें। ईश्वर द्वारा दी गई अनन्त शक्तियों को पहचानें एवं उनका स्वामी बनकर जगत का कल्याण करें। ‘‘विश्व बंधुत्व’’ एवं ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ को यथार्थ करें। इस लोक मे अपना विकास करें और परलोक के लिए भी आत्म-शक्तियों का विकास करें। जिस तरह से पिता की विरासत का स्वामी उसका पुत्र होता है, ठीक उसी तरह से जगत पिता परमात्मा की विरासत के आप हकदार हैं। जब आप उस परमात्मा की संतान हैं तो परम तत्व प्राप्त कर इस मृत्यु लोक में राज करें ओर परलोक में भी राज करें। मुक्ति के मार्ग पर चलते हुए मोक्ष प्राप्त करें ओर परमात्मा में विलीन हो जायें ।

योग के फायदे
प्यारे साधक भाइयों एवं बहनों,
अध्यात्मिक योग, ध्यान कोर्स के माध्यम से मनुष्य अपना सर्वांगीण विकास करते हुये सफल जीवन जीने की कला सीखता है एवं अंत मे मोक्ष (परमात्मा में विलीन) प्राप्त करता है। कार्यक्रम के निम्नलिखित फायदे हैं:-
  • सफल जीवन जीने की कला सीखे:- योग के माध्यम से आत्म शक्तियॉ जागृत होने से मनुष्य को अंतर्निहित शक्तियों का आभास होता है। व्यक्ति अंदर से मजबूत होता है। जिस तरह से बीमारी होने पर दबाई अंदर (पेट के अंदर) ली जाती है ओर रोग ठीक हो जाते हैं या फिर शरीर अंदर से मजबूत (एन्टीवायटिक पॉवर अधिक) होने से बाह्य संक्रामक बीमारियॉ असर नही करती हैं। ठीक उसी तरह से यदि आपकी अंतर्निहित शक्तियॉ जागृत होंगी, आप उन्हे महसूस करेंगें तो जीवन मे आने वाली समस्त कठिनाईयों से मुक्त हो जायेंगे। इस लोक मे भी राज करेंगे ओर उस लोक मे भी राज करेंगे। जैसे किसी पौधे के फूलों या पत्तियों में पानी डालने से उसका विकास नहीं होता और वह जल्द ही मुरझा जाता है लेकिन यदि हम पौधें के जड़ में पानी डालें तो पौधें का पूर्ण विकास होता है और उस पौधे से हम लाभान्वित होते हैं। ठीक उसी प्रकार से शरीर की देखभाल करने से शरीर का विकास होता है परन्तु दुनियाबी कष्ट एवं तनाव से ग्रसित भी रहता है और एक दिन नष्ट भी हो जाता है। लेकिन यदि हम शरीर को संचालित करने वाली आत्मा को पहचाने, उसे महसूस करें, आत्म शक्तियों को जागृत करें, आत्म साक्षात्कार करें या अपने आपको पहचानें तो शरीर की अंतरनिहित शक्तियों का विकास होता है और वह मनुष्य ऊर्जावान, तेजस्वी बनता है। उसके चारों और इतनी सकारात्मक ऊर्जा व्याप्त रहती है कि दुनिया की कोई भी परेषानी, बुराईयॉं, तनाव उसके आसपास तक भी नही पहॅुच पाती। वह मनुष्य देवतुल्य हो जाता है।
  • आत्म शक्ति जागृत करना, आत्म साक्षात्कार करना:- हमारा शरीर जिस माध्यम से समस्त शारीरिक क्रियायें करता है, जिसके न रहने पर यह शरीर अस्तित्वहीन हो जाता है, वह माध्यम है आत्मा । आत्मा पारबृह्म परमात्मा का अंष है। जब आप योग क्रियाओं के माध्यम से आत्मा के दर्षन करते हैं, महसूस करते हैं, आत्म साक्षात्कार करते हैं तो आपकी आत्म शक्तियां जागृत होने लगती हैं। और एक दिन ऐसा आता है कि आप स्वयं देवतुल्य हो जाते हैं। कारण यह कि, जिस तरह दुनियावी पिता की विरासत का हकदार उसका संतान होता है उसी तरह से परम पिता परमेष्वर की विरासत का हकदार भी तो उसकी संतान होगी । तो आईये अपने आप को पहचानियें और परम पिता परमेष्वर की विरासत के स्वामी बनिये । जिस तरह से किसी भी दुख, तकलीफ, तनाव की स्थिति मे आप सब कुछ छोड़ सकते है किन्तु सांस लेना नही छोड़ते उसी तरह से दुनिया के सारे रिष्ते आपको एक बार छोड़ सकते हैं पर उसका रिष्ता (परमात्मा का ) आपसे अनंत है। तो आइये उस अनंत रिष्ते की डोर को पकड़ कर, मैं शरीर हॅूं, इस भाव को छोडें और मैं एक आत्मा हॅूं एवं उस परमात्मा की संतान हॅूं, का भाव जागृत करें। फिर आप पायेंगे सम्पूर्ण सृष्टि में आपके चारों ओर सुख ही सुख होगा ।
  • अपने अंदर छिपी ईश्वरीय शक्तियों को पहचानना, महसूस करना एवं उनके दर्शन करनाः- क्या आप जानते हैं, कि आपके अंदर 128 करोड़ सूर्य का तेज है। जब एक सूर्य से पूरी दुनिया में उजाला हो जाता है, इतनी ऊर्जा प्राप्त होती है कि पूरी दुनिया उस पर निर्भर है। यदि एक दिन सूर्य न उदय हो तो दुनिया की गति रूक जायेगी। तो आईये अपने अंदर छिपी उस अनंत ऊर्जा को पहचाने, उसे जागृत कर महसूस करें। फिर आप पायेंगे की दुनिया में सबसे शक्तिशाली एवं ऊर्जावान आप हैं। ईष्वर ने आपको अनंत ऊर्जा, शक्ति एवं सामर्थ्य देकर इस सृष्टि में भेजा है किन्तु हम यहॉ आकर असहाय सी जिन्दगी जी रहे हैं। हम एक तारा के बराबर भी शक्ति महसूस नही करते जबकि बृह्म तेज प्रकाष हमारे अंदर समाहित है।
  • परम तत्व की प्राप्ति एवं मोक्ष:- प्रत्येक व्यक्ति परम तत्व को प्राप्त कर सकता है लेकिन परम तत्व को प्राप्त करने के लिए अपने अंदर उस शक्ति उर्जा को पहचानना होगा जो कि एक सतगुरू के द्वारा ही सम्भव है। जिस व्यक्ति को सतगुरू मिल जाये तो उनके सानिध्य मे रहकर परमात्मा की राह चलकर परम तत्व प्राप्त कर सकता है, एवं कर्म करते हुये इस दुनिया में एक महापुरूष के रूप पहचाना जा सकता है। परमात्मा की राह में चलते-चलते कर्म इस प्रकार हो जायेंगे कि आप इस दुनिया में तो एक अच्छे इंसान कहलायेंगे व इस मृत्यु लोक की अधिकतम 100 वर्ष तक अच्छी जिंदगी जी सकते हैं लेकिन परम तत्व की प्राप्ति के बाद आप इस लोक से भी हटकर परलोक में भी अच्छा स्थान पा सकते हैं जहॉं पर आत्मा की आयु लाखों वर्षों तक की होती है। क्यों न हम इस शरीर के माध्यम से अपना यह जीवन सवारें व परमात्मा की राह मे चल कर परमतत्व की प्राप्ति करें ।
  • शरीर के अंदर एवं बाहर समस्त बृह्माण्ड, देव लोक, पाताल लोक कहॉ-कहॉ हैं ? इन्हें जानना, अनुभव करना एवं भ्रमण करना ।:-
    प्यारे साधक भाईयों एवं बहनों,
    क्या आप जानते हैं कि हमारे शरीर के तीन रूप होते है 01. स्थूल शरीर। 02. कारण शरीर। 03. सूक्ष्म शरीर । हमारे शरीर में समस्त लोक अर्थात बृह्माण्ड समाया हुआ है। जिस प्रकार श्री कृष्ण ने बालपन मे अपनी मॉ यषोदा को अपने मुख में समस्त बृह्माण्ड के दर्शन करा दिये थे, ठीक उसी प्रकार हमारे शरीर में भी समस्त देव लोक, पाताल लोक, बृह्माण्ड समाहित है। बस उसे पहचानने की देरी है। जिस व्यक्ति ने पहचान लिया या महसूस कर लिया वह मानव, महापुरूष (देव तुल्य) हो जाता है। मैने स्वयं अपने शरीर के अंदर बृह्माण्ड एवं समस्त देव लोक के दर्षन किये व शरीर के बाहर भी किये । मैने अपने अनुभव में भी लिखा है कि किस तरह एक ही समय में मैने अपना प्राण विखण्डन कर एक सूक्ष्म आत्मा को शरीर के अंदर व दूसरी सूक्ष्म आत्मा को शरीर से बाहर बृह्माण्ड में भेजा । दोनो ही सूक्ष्म आत्माऐ एक साथ एक ही समय में बृह्माण्ड का भृमण कर रही थीं । जो लोक का स्थान शरीर से बाहर था वही लोक का स्थान शरीर के अंदर भी था । इससे यह स्पष्ट हुआ कि हम बृह्माण्ड के दर्षन अपने शरीर में कर सकते हैं और बाहर भी। बस देरी है तो अपने आप को पहचानने एवं अपना आत्म साक्षात्कार करने की ।
  • शारीरिक रोग एवं तनावों से मुक्ति:- ध्यान योग के माध्यम से शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक संतुलन नियंत्रित रहता है। मन की चंचलता समाप्त हो जाने से मन, चित्त, बुद्धि केवल आत्मा की आवाज सुनते हैं। मन बाहरी आडम्बर मे न फंसकर केवल आत्मा का कहना मानता है। जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करता है तो उसके मन मे अंतर्द्वन्द की स्थिति होती है कि, इस कार्य को करूं या न करूं । जब मन एकाग्र होता है व आत्म तत्व की प्रबलता होती है तब व्यक्ति केवल आत्मा की सुनता है तो उसे उस कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इसलिये कहते हैं कि जो कार्य अंतरआत्मा से किया जाये वह कार्य हमेशा सही होता है। जब हमारा प्रत्येक कार्य मन से न होकर आत्मा से होगा तो कभी भी कोई भी परेशानी चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक नही होगी और वह प्राणी हमेशा सुखी व आनंद पूर्वक रहेगा। उसे किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक परेशानी नही होगी। योगा एवं ध्यान के माध्यम से मनुष्य की अंतरनिहित शक्तियॉ जागृत होने से उसके चारो ओर सकारात्मक ऊर्जा व्याप्त रहेगी जिससे उसे बाह्य परेशानियों, समस्याओं, रोगों से आजीवन मुक्ति मिलेगी ।
  • जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति एवं परमधाम की प्राप्ति:- जब व्यक्ति आध्यात्म के मार्ग पर चलता है और इस दुनियादी जीवन को जीते हुये उसे परमात्मा तत्व का ज्ञान हो जाता है, तो वह अपने जीवन को परम पिता परमेष्वर को समर्पित कर उसके बताये मार्ग (अंतरआत्मा की आवाज) पर चलने लगता है और एक दिन जगत पिता अपने उस पुत्र को अपने धाम में स्थान देते हैं। इस तरह उसकी इस जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति एवं परम धाम की प्राप्ति हो जाती है ।
  • परम पिता परमेश्वर की विरासत का स्वामी बनना:- जिस प्रकार व्यक्ति अपने दुनियावी पिता की विरासत का उत्तराधिकारी होता है एवं उसका उपभोग करता है उसी प्रकार यदि वह अपने परम पिता परमेश्वर (ईश्वर) को पहचान ले एवं उसकी दी हुई शक्तियों को महसूस करे तो एक दिन वह उस परम पिता की विरासत का भी स्वामी बनकर इस लोक मे राज करेगा ओर मृत्योपरांत उस लोक मे भी दिव्य स्थान प्राप्त करेगा । 
हमसे कौन जुड़ सकता है
प्यारे साधक भाइयों एवं बहनों,
दुनिया के समस्त लोग, जो अपने आपको जानना चाहते हैं, आत्म शक्ति को पहचानना चाहते हैं, अपने अन्दर छिपी शक्तियों को जानना, पहचानना एवं महसूस करना चाहते हैं, मुक्ति एवं मोक्ष के मार्ग पर चलते हुये अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं । परमपिता परमेश्वर की विरासत का सच्चा वारिस बनकर वास्तविक जीवन (प्रकृति द्वारा सौंपे गये दायित्व का निर्वहन एवं परमगति की प्राप्ति) जीना चाहते हैं, हमसे जुड सकते हैं।
समस्त दीन, दुःखी, परेशान व्यक्ति सम्पर्क कर अपनी परेशानियों से मुक्ति पाकर सफल जीवन जी सकते हैं।

अंतरंग योग साधना
प्यारे साधक भाईयो एवं बहनों ।
आज के व्यस्ततम् माहौल में हर इंसान शारीरिक एवं मानसिक रूप से परेशान रहता है । जरा सोचिये जो शरीर हमारे लिए 24 घण्टे कार्य करता है, जिससे हमारी पहचान है । उस शरीर के लिए हम क्या करते है ?
पंच तत्वों की काया एक निश्चित समय पश्चात पुनः पंचतत्वों मे विलीन हो जायेगी। जिस माध्यम से हमारा शरीर सजीव है एवं समस्त शारीरिक क्रियायें करता है, जो इस शरीर के नष्ट होने पर भी नही मरती उस अजर-अमर अविनाशी आत्मा के बारे मे हमने कभी विचार नही किया ।
इन 05 (पॉच) प्रश्नों के जबाव जरा अपने आप से पूछें।
  1. मैं कौन हॅु ?
  2. कहॉ से आया हॅु ?
  3. क्या करना है ?
  4. क्या कर रहा हॅु ?
  5. जाना कहॉ है ?
हम सब उस पार बृह्म परमेश्वर की संतान है। अपनी अंतः शक्ति को पहचानना एवं उसे जागृत करने तथा सफल जीवन जीने की कला सीखने के लिए आये और ’’अंतरंग योग साधना’’ मे भाग लेकर अपना जीवन को सार्थक बनायें ।
प्रशिक्षण के विषय वस्तु:
  1. आत्मा क्या है ?
  2. मन और आत्मा में क्या अंतर है ? (जब शरीर मे मन का स्थान श्रेष्ठ है तो मन से श्रेष्ठ आत्मा कैसे है ?)
  3. शरीर के कितने रूप होते हैं ?
  4. ’’नवधा भक्ति’’ एवं ’’योगा’’ में क्या अंतर है ?
  5. बृह्मण्ड मे समस्त देव लोक, स्वर्ग लोक, पाताल लोक कैसा है एवं इनका स्थान बृह्मण्ड मे कहॉ-कहॉ है ( बृह्मण्ड का नक्शा बनाकर समझाया जायेगा।) ?
  6. समस्त बृह्मण्ड हमारे शरीर के अंदर कैसे ओर कहॉ स्थापित है ?
  7. आत्मा को शरीर के अंदर कैसे अनुभव करें ?
  8. आत्म प्रकाश (ज्योति) क्या है ? ध्यान के माध्यम से ज्योति (आत्म प्रकाश) जागृत करना क्यों महत्वपूर्ण है ?
  9. ध्यान, योग के माध्यम से शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक संतुलन को नियंत्रित कैसे करें ?
योग संजीवनी
प्यारे साधक भाईयो एवं बहनों ।
हिमालय की कंदराओं से लेकर भूमिगत समाधि तक के अनुभवों से देश के कोने-कोने में अपने ज्ञान योग एवं अध्यात्म से लोगो को लाभान्वित करने के पश्चात् आपके लिए लेकर आयें हैं योग संजीवनी। योग संजीवनी की विशेष योग क्रियाओं का लाभ उठाये और महायोगी ओम ताज बाबा जी के अनुभवों का लाभ पाकर अपने जीवन को सार्थक बनायें
इन प्रश्नों के जबाव जरा अपने आप से पूछें।
  1. आपको देव दर्शन कैसे होंगे ?
  2. आत्मा से परमात्मा को मिलाने का सरल मार्ग क्या है ?
  3. परम पिता परमेश्वर की अनुभूति कम समय में कैसे संभव है ?
  4. योग से समाधि कैसे संभव है ?
  5. मनुष्य के सार्थक जीवन जीने का रहस्य क्या है ?
  6. योग के माध्यम से अपने जीवन को स्वास्थ्य एवं सफल बनाएं। ?
उत्तर:
  1. अंतः करण में ध्यान की गहराईयों में जाते जायें और मन चक्षुओं से देखने की कोशिश करेंगें तो देव दर्शन अवश्य होंगे।
  2. आत्मा से परमात्मा को मिलाने के लिए आप एकांत, शांत जगह पर बैठे और ध्यान करते हुये मन की तरंगें को हृदय की ओर ले जायें और आत्मरूपी दिव्य तेज प्रकाश जो हृदय में स्थित है, उसे चुम्बकीय आकर्षण की तरंगों से मष्तिष्क की ओर ले जाएं, मष्तिष्क के उस स्थान पर जहॉं सहस्त्रदल है उसमें समाहित कर दो उस दिव्य प्रकाश को जो मन की तरंगों के साथ मष्तिष्क की अन्तिम परत में ले जायें वहॉं एक बिन्दु की तरह प्रकाश की अनुभूती होगी जिसका वर्णन आप स्पष्ट से नहीं कर पाओगे और उस बिन्दु मात्र के दर्शन में आप अन्नत आनन्द, परमानन्द की अनुभूति महसूस करेंगे।
  3. परम पिता परमेश्वर की अनुभूति कम समय में पाने के लिए ध्यान मुद्रा में बैठे, शान्त चित्त, मन से अन्तर मुख, से कहे कि हम आत्मा परमपिता परमेश्वर अर्थात् अपने पिता से मिलना चाहते हैं। जो सबका पिता है, जगत नियन्ता है। हम उसे महसूस करना चाहते हैं। Supreme Power को कहते हुए ध्यान करें और अंतः करण में जो विद्युत तरंगें है उसे ध्यान ॐ माध्यम से इकट्ठा करने की कोशिश करें उसी समय आपके अंतकरण में परमपिता परमेश्वर व देव दर्शन अवश्य होंगें।योग क्रियाओं के माध्यम से ही समाधि सम्भव है। सुख आसन या कमल आसन में बैठे और ऑंखे बन्द कर लें फिर अपने मन को शान्त करने की कोशिश करें मनचक्षुओं से हृदय में जो बिन्दु रूपी प्रकाश हैं। उस पर ध्यान केन्द्रित करें फिर ॐ का उच्चारण तीन बार करें । अंतःकरण में जो वायु है और तरंगें हैं, उसे मष्तिष्क या बृह्मण्ड की ओर ले जायें। ध्यान के माध्यम से उस स्थान पर जहॉं वायु नहीं है। वहॉं पहुंचते ही आप शून्य की अवस्था में चले जायेंगें, उस स्थान पर पहुंचने में न दुख न सुख लेश मात्र भी नहीं रह जाता। आपको अलौकिक आनन्द की प्राप्ति होगी। वैसे समाधि की अवस्था सात तरह की होती है।
  4. मनुष्य के सार्थक जीवन जीने का रहस्य है, कि अपने आपको पहचाने, कि मैं कौन हूं। प्राकृतिक ने मुझे मनुष्य रूप में एक विशेष कार्य, उद्देश्य देकर भेजा है, ईश्वर मेरे शरीर से कुछ विशेष कार्य कराना चाहता है। नशा मुक्त जीवन जीना चाहिए अपने पॉंच तत्वों की काया को ईश्वर का मन्दिर मानो और आत्मा को परमात्मा का अंश मानो हर आत्म रूपी मनुष्य को अपना भाई मानों चाहे कोई अमीर या गरीब अथवा छोटा हो या बडा सभी को आत्मा से समकक्ष समझना चाहिए हमेशा मन चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए, दुख को भी ईश्वर का प्रसाद समझ कर स्वीकार करें हमेशा मुस्कुराते रहे।
  5. योग एक ऐसी क्रिया है जो शरीर को भी स्वस्थ रखता है। और आत्मा से परमात्मा को मिलाता है आप लोग भी योगी बनिये।

Om Taaj Baba 
गतिविधियां
संस्था द्वारा की गई विभिन्न गतिविधियां नीचे दी गई है।
  • योग एवं ध्यान शिविरः- क्षेत्रीय जनता में जन-जागरूकता लाने हेतु जगह-जगह पर योग एवं ध्यान शिविर आयोजित कर उनका सर्वांगीण विकास किया जाता है साथ ही शहरों, महानगरों आदि में भी इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। जहॅा उन्हे सफल जीवन जीने की कला का ज्ञान दिया जाता है। आत्म साक्षात्कार करना, ईश्वर द्वारा दी गई अनंत शक्तियों को पहचानना एवं उन्हे महसूस करना, ईश्वर के मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करना अपने आप को पहचानना आदि का ज्ञान एवं अनुभव कराया जाता है।
  • स्वास्थ्य शिविर:- जनहित मे स्वास्थ्य शिविर के माध्यम से सामान्य एवं लाइलाज असाध्य रोगों का उपचार योग क्रियाओं एवं अदृश्य शक्तियों के माध्यम से किया जाता है। ऐसे कई मरीजों का उपचार किया जा चुका है, जिन्हे बड़े-बडे़ चिकित्सकों ने जबाब दे दिया था। ‘‘जब दवा काम न करे तो दुआ काम करती है।’’ जन-मानस की इस भावना को सार्थक करते हुए कई असाध्य रोगों से लोगों को निजात दिलाते है। ग्रामीण अंचलों मे जहॉं आज भी चिकित्सकीय सुविधा का अभाव है या धनाभाव के कारण वे बड़ी अस्पतालों में इलाज नही करा पाते हैं रोगमुक्त किये जाते हैं।
  • शिक्षा प्रोत्साहन:- ग्रामीण अंचलों में गरीब व आदिवासी बच्चों को निःशुल्क पाठ्य सह-सामग्री, जैसेः- स्लेट-बत्ती, पेन-पेंसिल, कापियॉ, ज्योमेट्री बॉक्स, स्कूल बैग आदि का वितरण करना तथा उन्हें शिक्षा का महत्व बताते हुए शिक्षा के लिए प्रेरित करना मेरा प्रमुख उद्देश्य है। शिक्षा, सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहे बल्कि बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु उन्हें नैतिक व अध्यात्मिक ज्ञान भी दिया जाता है ।
  • बालिका शिक्षा प्रोत्साहन मेला:- सेवा संस्थान के माध्यम से बालिका शिक्षा प्रोत्साहन मेला आयोजित कर समाज में बालिका शिक्षा को बढावा देने एवं लिंग भेद समाप्त करने तथा महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को समाप्त करने का कार्य कर किया जाता हैं। मेरा मानना है कि जब हम एक बालक को शिक्षा दिलाते है तो वह सिर्फ एक ही कुल का उद्धार करता है, यदि वह लायक निकला तो, अन्यथा कुल को कलंकित करता है। किन्तु जब हम एक बालिका को शिक्षा दिलाते हैं, तो वह तीन कुलों का उद्धार करती है, (01.) जिस कुल में उसका जन्म हुआ है। (02.) जिस कुल में वह शादी के बाद जायेगी। (03.) जिस कुल में उससे जन्मी बच्ची का विवाह होगा।
  • नशामुक्त समाज:- आज समाज मे व्याप्त सबसे बडी बुराई नशा है, नशे से कई परिवार तबाह हो जाते है, कई बच्चे शिक्षा से विमुख हो जाते हैं। यहॉं तक कि नशा से होने वाली असमय मृत्यु परिवार में भीषण आपदा ला देती है। इससे परिवार ही नहीं समाज व देश की भी हानि होती है। नशामुक्त समाज की स्थापना हेतु प्रवचन एवं अध्यात्म के माध्यम से जन-जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है एवं कार्यक्रमों में लोगों को नशामुक्ति हेतु शपथ् दिलाई जाती है।
  • वृक्षारोपण:- ‘‘वृक्ष धरा की धरोहर हैं, करते दूर प्रदूषण हैं।’’ प्रत्येक जन कल्याणकारी कार्यक्रमों के पश्चात उस स्थान पर वृक्षारोपण किया जाता है एवं आमजन को भी वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया जाता है। वृक्षों के महत्व एवं उनके कमी से होने वाली हानियों से भी आमजन को समझाइश दी जाती है। जिस तरह हम अपनी संतान को पालते हैं ताकि वह हमारे बुढ़ापे का सहारा बने उसी तरह से आप लोग भी वृक्ष लगाकर उसे पालिये ताकि वह आप सब के जीवन का सहारा बन सके।
  • योग-ध्यान प्रशिक्षण:- मनुष्य के सर्वांगीण विकास हेतु समय-समय पर योग, ध्यान प्रशिक्षण शिविर चलाये जाते हैं। परमपिता परमात्मा द्वारा प्रत्येक जीवधारी मनुष्य को अनंत शक्तियॉं प्रदान की गई हैं, किन्तु वे दुनियावी माया-मोह में फसकर अपनी अंतरनिहित शक्तियों को भूलकर मन के वशीभूत होकर गलत रास्ते पर चल रहे हैं। तत्सम्बंध में प्रशिक्षण के माध्यम सफल जीवन जीने की कला सिखाई जाती है ।
  • गरीब कन्याओं के विवाह मे सहयोगः- गरीब परिवार जो अपने कन्याओं के विवाह हेतु समर्थ नही है उनके कन्याओं के विवाह मे आवश्यक सहयोग प्रदान किया जाता है।
  • धार्मिक कार्यक्रमो का आयोजन:- समय-समय पर यज्ञ, भण्डारा, गुरू पूर्णिमा उत्सव, ईद, उर्स, आदि धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कर समाज को सर्वधर्म समभाव की प्रेरणा देना एवं भण्डारा (लंगर) के माध्यम से जाति भेद दूर किया जाता है।



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ब्रह्मर्षि अम्बाला संस्थान
लखाखेरा आश्रम
ग्रामः लखाखेरा
पोस्ट और तहसीलः बड़वारा - 483773
जिलाः कटनी
+91 7354400029, +91 9926 900163
ईमेल: brahmarshiambala@rediffmail.com, yogi_om@yahoo.com 
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