बाज ओर कोरोना

# बाज़ की नज़र और हौसले का लोहा दुनिया मानती है ,किंतु बाज़ के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब उसे ज़िंदा रहने  के लिए और अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कई कठोर फ़ैसले लेने पड़ते है. 

# बाज़ की उम्र 70 साल की होती है , किंतु 40 साल तक ही इसके पंजे सही ढंग से काम करते है ,40 साल के बाद ये पंजे मुड़ने के कारण कमजोर हो जाते है और शिकार नहीं पकड़ पाते, इसकी लम्बी और तीखी चोंच भी आगे से मुड़ जाती है , पंख मोटे होने के कारण भारी हो जाते है और छाती से चिपक जाते है , इससे उसे उड़ने में बहुत दिक्कत होती है. ऐसे में बाज़ के पास केवल दो ही रास्ते रह जाते है या तो ऐसे ही बिना शिकार के भूख से अपना जीवन त्याग दे या फिर एक बड़े बदलाव की बेहद दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरे जिसकी अवधि 5 महीने की होती है. और इसिको बाज़ का पुनर्जनम भी कहा जा सकता है.

# एक नया जीवन प्राप्त करने के लिए बाज़ उड़कर एक ऊंची चट्टान पर जाता है और वह घोंसला बना कर रहने लगता है , बदलाव की प्रक्रिया में वो अपने भारी हो चुके पंखो को अपनी चोंच से नोच नोच कर फेंक देता है , फिर चट्टान पर अपनी चोंच मार-मार कर दर्द की परवाह ना करते हुए उसे तोड़ देता है और फिर अपने पंजो को भी ऐसे ही दर्दनाक तरीक़े से तोड़ देता है . और ये दर्द भरी विधि को पूरा करने के बाद बाज़ को अपनी पुरानी अवस्था में आने में 5  महीने का इंतज़ार करना पड़ता है .

# इसके बाद बाज़ का नया जन्म होता है उसके नए पंख , चोंच और पंजे आ जाते है जिसके बाद वो फिर से ऊंची उड़ान भर सकता है शिकार कर सकता है और अपने हिसाब से अपनी ज़िंदगी जी सकता है . आगे के 30 साल उसे इन कष्टों के बाद ही मिलता है . 
     ये कुदरत की एक बहुत बड़ी मिसाल है जो मनुष्य जाती के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा है . मनुष्य जाती जो आज कोरोना जैसे जानलेवा वाइरस से संघर्ष कर रही है और एक मनुष्य होने  नाते हम बाज़ से ये सीख सकते है की अपने जीवन और अस्तित्व रक्षा के लिए हमें भी कुछ कठोर फ़ैसले लेने पड़ेंगे और यदि हमें फिर से वही स्वतंत्र और उन्मुक्त जीवन जीना है तो इस समय सरकार द्वारा दिए जा रहे कठोर निर्देशो का पालन करना ही होगा ....जय हिंद

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