शाखा लगाने की आज्ञाएँ (कुल - 18)
शाखा लगाने की आज्ञाएँ (कुल - 18)
-0-0 (सूचनात्मक सीटी)
- संघ दक्ष
- आरम्
- अग्रेसर
- अग्रेसर सम्यक्
- आरम्
- संघ सम्पत्
- संघ दक्ष
- संघ सम्यक्
- अग्रेसर अर्धवृत्
- संघ आरम्
- संघ दक्ष (ध्वज लगाना)
- ध्वज प्रणाम १-२-३
- संख्या
- आरम्
- संघ दक्ष
- आरम् (संख्या देकर आना )
- संघ दक्ष
- स्वस्थान
शाखा विकिर करने की आज्ञाएँ (कुल - 15 )
- -000 (सूचनात्मक सीटी )
- अग्रेसर सम्यक्
- आरम्
- -00 (संघ सम्पत् )
- संघ दक्ष
- संघ सम्यक्
- अग्रेसर अर्धवृत्
- संख्या
- आरम्
- संघ दक्ष
- आरम् (कार्यवाह को संख्या देकर आना)
- संघ दक्ष
- प्रार्थना
- ध्वज प्रणाम १-२-३
- संघ विकिर
सीटी तथा संकेत
- (-) लम्बी सीटी के लिए
- (0) छोटी सीटी के लिए
-0-0 शाखा प्रारंभ
-0 कालांश बदल
-- स्वयंसेवकों को ध्वजाभिमुख दक्ष करने के लिए
00, 00 कार्यक्रम पूर्ववत प्रारंभ करने के लिए
0 प्रार्थना के लिए तथा निर्धारित कार्य के लिए
-000 शाखा समापन के समय अग्रेसरों को बुलाने के लिए
-00 संपत करने के लिए गण शिक्षकों को सूचना
- - -/अधिक आकस्मिक सूचना के लिए
उद्घोष
- भारत माता की -जय
- वन्दे -मातरम
- हर-हर -बम-बम
- रूद्र देवता -जय-जय काली
- जय शिवाजी -जय प्रताप
- भारत के शहीदों की -जय
- संघटन में -शक्ति है
- संघे शक्ति -कलौयुगे
- जयकारा वीर बजरंगी -हर-हर-महादेव
- जय हो -जय हो
- कौन जीता कौन जीता -संघ जीता संघ जीता
- हिन्दू-हिन्दू -भाई-भाई
- जय शिवाजी -जय भवानी
- हिन्दू वीर कैसा हो -वीर शिवाजी जैसा हो
- भारतमाता की -जय हो-जय हो
प्रार्थना
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।
।। भारत माता की जय ।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें