अंतिम सत्य
. अंतिम सत्य
सुन्दर देहि देखकर उपजत हैं अनुराग।
चाम न होता देही पर जीवित खाते काग।।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।।
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि यह संसार मूर्दो का देश है। यहा एक दिन सबको मरना है। फिर भी हमें इस संसार मे जीने की इच्छा क्यो होती है ? .हम आत्मा का अनुभव क्यो नही करना नहीं चाहते। दिन रात दुनिया के पदार्थो मे क्यो खो जाते है।
कबीर साहिब जी कहते हैं कि इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।
जब स्वासो का ठेका पुरा होता है तो घर वाले शमशान घाट पहुंचाने की जल्दी करते है। यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं। सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है।
कबीर साहिब जी का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है। जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी
कबीर परमात्मा इस वाणी में कहते हैं कि हे मानव तू इस सुंदर देह का अहंकार करता है अगर भगवान इसके ऊपर चमड़े की परत न देता तो काग जीवित ही नोचते तुझे। यह शरीर परमात्मा ने आपको भक्ति करके यहाँ के 84 लाख जीवन की दुर्गति से पीछा छुड़ाने के लिए दिया है।
आज हम अपने सुंदर शरीर को देखकर बहुत इतराते हैं, लेकिन जब हमारा अंत समय अर्थात मृत्यु होती है तब यह सुंदर शरीर आग में जलाया जाता है तब कोई भी सुंदरता हमें बचा नहीं सकती, समय रहते अगर हमने असली परमात्मा की भक्ति नहीं की तो यह सुंदर शरीर किसी काम का नहीं।
सतगुरू कहते हैं कि संसार में हमारा जीवन चार दिनों का खेल है, मौत का घंटा किसी एक स्थान पर नहीं बज रहा है, संसार का कोई कोना ऐसा नहीं है जहाँ मौत का राज्य न हो, संसार का कोई भी इन्सान मौत के वार से बच नहीं सकता, यह जीवन झूठा है , मौत हर वक़्त फंदा कस रही है।
हे इन्सान तू भली-भांति सोचकर देख की एक दिन तुझे मौत का शिकार हो जाना है , तू झूठी सेज पर सोया हुआ है और तेरी उम्र व्यर्थ ही बीतती जा रही है। कबीर साहिब जी कहते हैं कि हमें मौत की बातें बताकर हमें डराते नहीं हैं, वे केवल सच्ची हकीकत बयान करते हैं , की इस रास्ते पर हमें अकेले जाना है ।
इसलिए कबीर साहिब जी कहते हैं कि हे इन्सान! तू प्रभु की भक्ति में देर न कर, प्रभु की बन्दगी करके अपने आत्मिक स्वरूप की पहचान द्वारा परमात्मा की पहचान करने का यत्न कर।
सत साहिब जी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें