केशव अर्चना

स्मरे राष्ट्र सारा भरे प्रेम से जो
प्रभावी तुम्हारी तपो-साधना
अतिव्याकुला बुद्धि से गान कैसे
यशोगान की गौरवालापना ॥धृ॥

कभी वासना थी न लोकेषणा की
जगायी कृति-दीप्ति तेजस्वला
सहस्रो मनो मे वही जागृता हो
उठी हिन्दु स्वातन्त्र्य की प्रज्वला ॥१॥

न हो देव पीडा तुम्हे चिन्तना से
सुनोगे हमी से योशोगर्जना
बहे नेत्र से भावना नीर धारा
मदीया यही अश्रु-पुष्पार्चना ॥२॥

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