"अविजित पोरस"





"अविजित पोरस"

ई0पु0 315 -21-
मकदूनिया में स्त्रियों को कतार बद्ध खड़ा कर दिया गया सौंदर्य - कमयिता के इस प्रदर्शन में *जो सबसे खूबसूरत होगी* उसे यूनान के शासक *सिकंदर* को दिया जायेगा बाकी *सैनिकों को* बाँट दिया जायेगा।

पर्शिया कि इस हार ने एशिया के द्वार खोल दिया । भागते पर्शियन शासकों का पीछा करते हुये सिकंदर हिंदुकुश तक पहुँच गया । चरवाहों , गुप्तचरों ने सूचना दी इसके पार एक महान सभ्यता है। धन धान्य से भरपूर
सन्यासियों , आचार्यों , गुरूकुलों , योद्धाओं , किसानों से विभूषित सभ्यता जो अभी तक अविजित है।

सिकंदर ने जिसके पास अरबी , फ़रिशर्मिंन घोड़ों से सुसज्जित सेना थी ने भारत पर आक्रमण का आदेश दिया , झेलम के तट पर उसने पड़ाव डाल दिया, आधीनता का आदेश दिया।

महाराज पोरस कि सभा लगी थी 
गुप्तचरों ने सूचना दी आधे विश्व को परास्त कर देने वाला यूनान का सम्राट अलक्क्षेन्द्र ने भारत विजय हेतु सीमा पर पड़ाव डाल दिया है।

महामंत्री का प्रस्ताव था - "राजन तक्षशिला के राजा आम्भीक ने अधीनता स्वीकार कर ली है।
यह विश्व विजेता है , भारत के सभी महाजनपदों से वार्ता करके ही कोई उचित निर्णय लें"...।

महाराज पोरस जो सात फीट लंबे थे, जिनकी भुजाओं में इतना बल था कि सौ बलशाली योद्धा एक साथ युद्ध करने का साहस नहीं कर सकते थे !
ने महामंत्री को फटकार लगाई "हम भारत के सीमांत क्षेत्र के शासक है यदि हम ही पराजय स्वीकार कर लिये तो भारत कैसे सुरक्षित रहेगा..."

अपने पुत्र को सिकंदर कि शक्ति पता करने भेजते हैं। साहसी पुत्र ने सिकंदर पर हमला कर दिया।
23 वर्ष कि अवस्था में वीर बालक युद्ध भूमि में मारा गया ,
इस समाचार से महाराज पोरस विचलित नहीं हुये उन्होंने सेनापति को झेलम तट पर पड़ाव का आदेश दिया। यूनानी सैनिक इतनी छोटी सेना देखकर हैरान थे ..।

21 दिन की प्रतीक्षा के बाद सिंकदर ने पोरस कि सेना पर हमला कर दिया परन्तु *अनुपात में कम क्षत्रिय हारने का नाम नहीं ले रहे थे।

सेनापति महाराज पोरस
को सूचना देता है
"सिकंदर के तेज घोड़ों और बारूद के सामने क्षत्रिय योद्धा वीरगति को प्राप्त कर रहे है... "
शिवभक्त पोरस महादेव कि आराधना कर रहे थे। पोरस ने दोपहर तक सिकंदर को रोक रखने का आदेश दिया !

दोपहर तक पोरस कि आधी से अधिक सेना खत्म हो चूंकि थी,  यूनानी सैनिक जीत के जश्न में डूबने वाले ही थे ! तभी पूर्व से भगवा पताका से आसमान भगवामय हो गया।

हर हर महादेव के शंखनाद से, पृथ्वी कांप उठी झेलम का पानी उफान मारने लगा जैसे अपने राजा का चरण छूने को व्याकुल हो..

10 हजार हाथियों से घिरे *महाराज पोरस, ऐसे लग रहे थे कि हाथी के उपर कोई सिंह युद्ध करने को आ रहा है।* बची सेना अपने राजा को युद्धस्थल पर देखकर पागल सी हो गई..।

सिकंदर अपने अभियान में बहुत से *बड़े योद्धाओं को पराजित किया था* लेकिन ऐसा दृश्य उसने कभी नहीं देखा था! *"क्या कोई व्यक्ति इतना भी विशाल और गर्वित हो सकता है ?"*

पोरस के एक संकेत पर हाथियों पर सुसज्जित योद्धा टूट पड़े.. *यूनानी सैनिक गाजर-मूली की तरह काट दिये जा रहे थे।* हाथियों ने सैनिकों को बुरी तरह कुचल दिया..। *लेकिन महाराज पोरस की निगाह कुछ और खोज रही थी.. उस दुष्ट को.. जिसने भारत से गद्दारी की थी राजा आम्भीक को..*

जैसे ही वह सामने से निकला पोरस ने बरछी फेंक कर मारी.. लेकिन *आम्भीक सिकंदर के सेनापति कि आड़ में छुप गया सेनापति का शरीर छलनी हो गया..।*

पोरस ने अपने *भाले से* एक यूनानी के घोड़े पर वार किया उस *घोड़े को वहीं ढेर कर दिया..।*  ये सब देखकर सिकंदर समझ गया *जब तक पोरस युद्ध भूमि है भारतीय सेना को हराया नहीं जा सकता..।*

अभी भी यूनानी सैनिकों की संख्या पोरस के सैनिकों से *अधिक थी* लेकिन जिस तरह पोरस भीष्म कि तरह काट रहे है.. *चारों तरफ भय का वातावरण है।*

*सिकंदर ने सुनिश्चित किया अब पोरस को ही मारना होगा।* 
अपने विश्वसनीय घोड़े और 20 योद्धाओं के साथ सिकंदर पोरस कि तरफ बढ़ा।

अपने राजा कि सुरक्षा में भारतीय सैनिकों ने मोर्चा संभाल लिया 20 में से 10 यूनानी योद्धा मार दिये गये *लेकिन विश्व विजेता सिकंदर पोरस कि तरफ बढ़ता ही जा रहा था।*

*अब सिकंदर और पोरस आमने सामने थे..।* उपर महादेव अपने भक्त कि वीरता देख रहे थे,
*हाथी के हौदे से एक बिजली चमकी जैसे लगा शिव का त्रिशूल हो !* महाराज पोरस अपने भाले का संधान कर चुकें थे। *भाला सिकंदर कि तरफ बढ़ा चला आ रहा था।*

घोड़े ने स्वामी भक्ति दिखाई *और अगले पैरों को उठाकर वह भाले के सामने आ गया ,* हवा को चीरता हुआ भाला घोड़े को ढेर कर गया.. और सिकंदर को जा लगा.. *घायल - मूर्छित सिकंदर जमीन पर गिर पड़ा..*

*उसने पहली बार खुले में आसमान देखा था..* 
घायल सिकंदर को लेकर उसके योद्धा शिविर की तरफ भागे..।

*इधर झेलम का उफान थम सा गया..  अपने राजा के चरणों को छूकर झेलम थम गई, वापस सामान्य वेग से बहने लगी। आखिर क्यों न उन्हें गर्व हो, आज उनके सम्राट ने विश्व विजेता को पराजित किया है..।*

*जो जीता वही सिकंदर..*
पर जिसने सिकंदर को जीता *वो महान् सम्राट महाराज पौरस.....*
स्रोत -प्लुकार्ड ,पर्शियन इतिहासकार
(संकलन आभार श्रीमान अरुण जी)

*इसे ही नरेटिव बनाना कहते है, आप हम सब जानते पढ़ते आये "जो जीता वही सिकन्दर" परन्तु उस बड़े योद्धा के विजयी रथ को रोक कर वापिस मोड़ देने वाले कि कहानी किसी ने हमे नही सुनाई। उपरोक्त कहानी का अंश उनके ही समाज के प्रसिद्ध लेखक की पुस्तक से संकलित है। वे हमारे राजा पोरस को महान कहते/मानते है परन्तु हम अपनी ही पुस्तको में,पाठ्यक्रम में, अपने ही बच्चों को सिकन्दर महान सिखाते है। आज आवश्यकता है बच्चों यानी अपने भविष्य के योद्धाओं को, भारतीय इतिहास तथा हमारी पुरातन संस्कृति पर गर्वित महसूस कराने की। तो आइए, इसे सभी से साँझा करे।*

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